भारत का किसान आंदोलन और महात्मा गांधी की प्रासंगिकता, दोनों को परस्पर पर एक साथ लाया जा सकता है। लेकिन जब हम जिंदा लोगों को ही नहीं पूछते हैं, तो मरे हुए लोगों का हमारे जीवन में कोई स्थान है ही नहीं। क्या महात्मा गांधी को समझना और उनकी वैचारिक मनोविज्ञान को सामाजिक दायरे से पार जाकर जीना, संभव है?
महात्मा गांधी भारत की कालजयी धरोहर है, किसी दंगाई को अपने मूँह से उनका नाम लेने से पहले सोचना चाहिए। शायद गांधी जी को पता नहीं है कि हम विश्व गुरु बन चुके हैं। भारत के बुद्धिजीवियों से लेकर नेताओं और स्वयं जनता को, गांधी जी के इस वक्तव्य को याद रखना चाहिए "भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम वर्तमान में क्या करते हैं।"
June 2024
Photography - gaurav awasthi
text - photontology